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महाराज कृष्णदेव राय के राजमहल में एक बगीचा था, जिसमें विभिन्न प्रकार के फूल लगे हुए थे. सारे फूलों में लाल गुलाब के फूल महाराज को अतिप्रिय थे. इसलिए, माली को उन्होंने उन फूलों का विशेष ध्यान रखने का निर्देश दिया था.
महाराज जब भी बगीचे में भ्रमण करने आते, तो लाल गुलाब के फूलों को देख प्रसन्न हो जाते. एक दिन जब वे बगीचे में भ्रमण के लिए आये, तो पाया कि पौधों में लगे लाल गुलाब के फूलों की संख्या कुछ कम है. गुलाबों के कम होने का क्रम कई दिनों तक चला. ऐसे में उन्हें संदेह हुआ कि अवश्य कोई लाल गुलाब के फूलों की चोरी कर रहा है.
उन्होंने बगीचे में पहरेदार लगवा दिए और उन्हें आदेश दिया कि जो भी लाल गुलाब का फूल तोड़ते हुए दिखे, उसे तत्काल बंदी बनाकर उनके समक्ष प्रस्तुत किया जाए.
पहरेदार सतर्कता से बगीचे की निगरानी करने लगे. उनकी निगरानी रंग लाई और एक दिन चोर उनके हाथ लग गया. यह चोर और कोई नहीं बल्कि तेनालीराम का पुत्र था. जब यह बात तेनालीराम के घर तक पहुँची, तो उसकी पत्नि बहुत चिंतित हुई और तेनालीराम से मिन्नतें करने लगी कि किसी भी तरह उसके पुत्र को छुड़ाकर लाये.
तेनालीराम अविलंब राजमहल के बगीचे की ओर चल पड़ा, ताकि महाराज के सम्मुख प्रस्तुत करने के पूर्व वह अपने पुत्र से मिल सके. रास्ते भर वह उसे बचाने का उपाय सोचता रहा.
जब वह राजमहल के बगीचे में पहुँचा, तो देखा कि पहरेदार उसके पुत्र को महाराज के सम्मुख प्रस्तुत करने की तैयारी में है. जब वह अपने पुत्र से बात करने को हुआ, तो पहरेदारों ने यह कहकर रोक दिया कि अब अपने पुत्र से बंदीगृह में मिलना.
तेनालीराम क्या करता? दूर खड़ा अपने पुत्र को पहरेदारों द्वारा ले जाता हुआ देखता रहा. उसका पुत्र जोर-जोर से रो रहा था और कह रहा था, “पिताजी! आगे से मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा. मुझे बचा लीजिये. कृपया कुछ करिए.”
तेनालीराम दूर से ही चिल्लाया, “मैं क्या कर सकता हूँ. अपनी तीखी ज़ुबान का प्रयोग करो. शायद वही तुम्हें बचा पाए.”
पुत्र सोचने लगा कि ये पिताजी क्या कह गए? क्या इसका कोई अर्थ था? वह सोचने लगा और कुछ देर में उसे पिता द्वारा कही बात का अर्थ समझ में आ गया. उसका अर्थ था कि तीखी ज़ुबान का प्रयोग कर गुलाब के फूलों को खा लो.
उसने ऐसा ही किया और रास्ते भर गुलाब के फूलों को खाता रहा. जब पहरेदार महाराज के सामने पहुँचे, तब तक वह सारे गुलाब खा चुका था.
पहरेदार महाराज से बोले, “महाराज, ये बालक ही लाल गुलाब के फूलों का चोर है. हमने इसे रंगे हाथ पकड़ा है.”
“लज्जा नहीं आती. इतने छोटी उम्र में चोरी करते हो? बड़े होकर क्या कारोगे.” महाराज क्रुद्ध होकर बोले.
तेनालीराम का पुत्र बोला, “मैंने कोई चोरी नहीं की महाराज. मैं तो बस बगीचे से जा रहा था और आपके पहरेदारों ने मुझे पकड़ लिया. कदाचित् इनका ध्येय आपकी प्रशंषा का पात्र बनना हैं. किंतु, महाराज इसमें मुझ निर्दोष को सजा क्यों? अगर मैंने गुलाब चुराए होते, तो मेरे पास गुलाब भी होते. लेकिन देखिये मेरे हाथ खाली है.”
महाराज ने देखा कि उसके हाथ में कोई गुलाब नहीं है. पहरेदार भी चकित थे कि सारे गुलाब कहाँ नदारत हो गये. रास्ते में अपनी धुन में वे ध्यान नहीं दे पाए कि कब तेनाली का पुत्र सारे गुलाब चट कर गया.
अब बिना प्रमाण के यह साबित करना असंभव था कि वह गुलाब चोर हैं.
महाराज पहरेदारों को फटकारने लगे, “एक निर्दोष बालक को तुम कैसे पकड़ लाये? इसे अपराधी सिद्ध करने का क्या प्रमाण है तुम्हारे पास? भविष्य में प्रमाण के साथ चोर को लेकर आना. इसे तत्काल छोड़ दो.”
तेनाली राम के पुत्र को छोड़ दिया गया. वह घर पहुँचा और अपने माता-पिता से क्षमा माँगी और उन्हें वचन दिया कि भविष्य में बिना पूछे कभी किसी की कोई वस्तु नहीं लेगा, क्योंकि वह चोरी कहलाती है. तेनालीराम ने उसे क्षमा कर दिया.गुलाब का चोर
महाराज कृष्णदेव राय के राजमहल में एक बगीचा था, जिसमें विभिन्न प्रकार के फूल लगे हुए थे. सारे फूलों में लाल गुलाब के फूल महाराज को अतिप्रिय थे. इसलिए, माली को उन्होंने उन फूलों का विशेष ध्यान रखने का निर्देश दिया था.
महाराज जब भी बगीचे में भ्रमण करने आते, तो लाल गुलाब के फूलों को देख प्रसन्न हो जाते. एक दिन जब वे बगीचे में भ्रमण के लिए आये, तो पाया कि पौधों में लगे लाल गुलाब के फूलों की संख्या कुछ कम है. गुलाबों के कम होने का क्रम कई दिनों तक चला. ऐसे में उन्हें संदेह हुआ कि अवश्य कोई लाल गुलाब के फूलों की चोरी कर रहा है.
उन्होंने बगीचे में पहरेदार लगवा दिए और उन्हें आदेश दिया कि जो भी लाल गुलाब का फूल तोड़ते हुए दिखे, उसे तत्काल बंदी बनाकर उनके समक्ष प्रस्तुत किया जाए.
पहरेदार सतर्कता से बगीचे की निगरानी करने लगे. उनकी निगरानी रंग लाई और एक दिन चोर उनके हाथ लग गया. यह चोर और कोई नहीं बल्कि तेनालीराम का पुत्र था. जब यह बात तेनालीराम के घर तक पहुँची, तो उसकी पत्नि बहुत चिंतित हुई और तेनालीराम से मिन्नतें करने लगी कि किसी भी तरह उसके पुत्र को छुड़ाकर लाये.
तेनालीराम अविलंब राजमहल के बगीचे की ओर चल पड़ा, ताकि महाराज के सम्मुख प्रस्तुत करने के पूर्व वह अपने पुत्र से मिल सके. रास्ते भर वह उसे बचाने का उपाय सोचता रहा.
जब वह राजमहल के बगीचे में पहुँचा, तो देखा कि पहरेदार उसके पुत्र को महाराज के सम्मुख प्रस्तुत करने की तैयारी में है. जब वह अपने पुत्र से बात करने को हुआ, तो पहरेदारों ने यह कहकर रोक दिया कि अब अपने पुत्र से बंदीगृह में मिलना.
तेनालीराम क्या करता? दूर खड़ा अपने पुत्र को पहरेदारों द्वारा ले जाता हुआ देखता रहा. उसका पुत्र जोर-जोर से रो रहा था और कह रहा था, “पिताजी! आगे से मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा. मुझे बचा लीजिये. कृपया कुछ करिए.”
तेनालीराम दूर से ही चिल्लाया, “मैं क्या कर सकता हूँ. अपनी तीखी ज़ुबान का प्रयोग करो. शायद वही तुम्हें बचा पाए.”
पुत्र सोचने लगा कि ये पिताजी क्या कह गए? क्या इसका कोई अर्थ था? वह सोचने लगा और कुछ देर में उसे पिता द्वारा कही बात का अर्थ समझ में आ गया. उसका अर्थ था कि तीखी ज़ुबान का प्रयोग कर गुलाब के फूलों को खा लो.
उसने ऐसा ही किया और रास्ते भर गुलाब के फूलों को खाता रहा. जब पहरेदार महाराज के सामने पहुँचे, तब तक वह सारे गुलाब खा चुका था.
पहरेदार महाराज से बोले, “महाराज, ये बालक ही लाल गुलाब के फूलों का चोर है. हमने इसे रंगे हाथ पकड़ा है.”
“लज्जा नहीं आती. इतने छोटी उम्र में चोरी करते हो? बड़े होकर क्या कारोगे.” महाराज क्रुद्ध होकर बोले.
तेनालीराम का पुत्र बोला, “मैंने कोई चोरी नहीं की महाराज. मैं तो बस बगीचे से जा रहा था और आपके पहरेदारों ने मुझे पकड़ लिया. कदाचित् इनका ध्येय आपकी प्रशंषा का पात्र बनना हैं. किंतु, महाराज इसमें मुझ निर्दोष को सजा क्यों? अगर मैंने गुलाब चुराए होते, तो मेरे पास गुलाब भी होते. लेकिन देखिये मेरे हाथ खाली है.”
महाराज ने देखा कि उसके हाथ में कोई गुलाब नहीं है. पहरेदार भी चकित थे कि सारे गुलाब कहाँ नदारत हो गये. रास्ते में अपनी धुन में वे ध्यान नहीं दे पाए कि कब तेनाली का पुत्र सारे गुलाब चट कर गया.
अब बिना प्रमाण के यह साबित करना असंभव था कि वह गुलाब चोर हैं.
महाराज पहरेदारों को फटकारने लगे, “एक निर्दोष बालक को तुम कैसे पकड़ लाये? इसे अपराधी सिद्ध करने का क्या प्रमाण है तुम्हारे पास? भविष्य में प्रमाण के साथ चोर को लेकर आना. इसे तत्काल छोड़ दो.”
तेनाली राम के पुत्र को छोड़ दिया गया. वह घर पहुँचा और अपने माता-पिता से क्षमा माँगी और उन्हें वचन दिया कि भविष्य में बिना पूछे कभी किसी की कोई वस्तु नहीं लेगा, क्योंकि वह चोरी कहलाती है. तेनालीराम ने उसे क्षमा कर दिया.