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एक बार कुछ समुद्री नाविक एक बड़े जहाज में समुद्री यात्रा पर निकले. उनमें से एक नाविक के पास एक पालतू बंदर था. उसने उसे भी अपने साथ जहाज पर रख लिया.
यात्रा प्रारंभ हुई. जहाज कुछ दिन की यात्रा के बाद समुद्र के बीचों-बीच पहुँच गया. गंतव्य तक पहुँचने के लिए नाविकों को अभी भी कई दिनों की यात्रा करनी थी.
इतने दिनों तक मौसम नाविकों के लिए अच्छा रहा था. लेकिन एक दिन समुद्र में भयंकर तूफ़ान आ गया. तूफ़ान इतना तेज था कि नाविकों का जहाज टूट गया. नाविकों के जहाज को बचाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अंततः जहाज पलट गया.
नाविक अपनी जान बचाने के लिए समुद्र में तैरने लगे. बंदर भी पानी में जा गिरा था. उसे तैरना नहीं आता था. वह डूबने लगा और उसे अपनी मौत सामने नज़र आने लगी. वह अपनी जान बचने के लिए चीख-पुकार मचाने लगा.
उसी समय एक डॉल्फिन वहाँ से गुजरी. उसने बंदर को डूबते हुए देखा, तो उसके पास गई और उसे अपनी पीठ में बिठा लिया. वह बंदर को लेकर एक द्वीप की ओर तैरने लगी. द्वीप पर पहुँचकर डॉल्फिन ने बंदर को अपनी पीठ से उतारा. बंदर की जान में जान आई.
डॉल्फिन ने बंदर से पूछा, “क्या तुम इस स्थान को जानते हो?”
“हाँ बिल्कुल. यहाँ का राजा तो मेरा बहुत अच्छा मित्र है. और तुम जानती हो कि मैं भी एक राजकुमार हूँ.” बंदर की आदत बढ़ा-चढ़ाकर बात करने के थी. वह डॉल्फिन के सामने बड़ी-बड़ी बातें करने लगा.
डॉल्फिन समझ गई कि बंदर अपनी शान बघारने के लिए झूठ बोल रहा है, क्योंकि वह एक निर्जन द्वीप था, जहाँ कोई भी नहीं रहता था.
वह बंदर की बात का उत्तर देती हुई बोली, “ओह! तो तुम एक राजकुमार हो. बहुत अच्छी बात है. लेकिन क्या तुम्हें पता है कि बहुत जल्द तुम इस द्वीप के राजा बनने वाले हो.”
“राजा और मैं? कैसे?” बंदर ने आश्चर्य से पूछा.
“वो इसलिए कि तुम द्वीप पर एकलौते प्राणी हो. इसलिए बड़े आराम से यहाँ के राजा बन सकते हो. मैं जा रही हूँ. अब तुम अपना राज-पाट संभालो.” इतना कहकर डॉल्फिन तैरकर वहाँ से दूर जाने लगी.
बंदर पुकारता रह गया और उसने झूठ और शेखी से नाराज़ डॉल्फिन उसे वहीं छोड़कर चली गई.
सीख
व्यर्थ की शेखी बघारना मुसीबत को बुलावा देना है.