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एक बार विजयनगर में एक साधु का आगमन हुआ. वह नगर के बाहर एक पेड़ के नीचे बैठकर साधना करने लगा. विजयनगर में उसके बारे में यह बात प्रसारित हो गई की वह एक सिद्ध साधु है, जो चमत्कार कर सकता है.
सभी लोग उसके दर्शन के लिए धन, भोजन, फल-फूल के चढ़ावे के साथ जाने लगे. तेनाली राम को जब इस संबंध में ज्ञात हुआ, तो वह भी साधु से मिलने पहुँचा. वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि साधु के सामने चढ़ावे का ढेर लगा हुआ है और नगर के लोग आँखें बंद कर आराधना में लीन हैं.
उसने देखा कि साधु अपनी आँखें बंद कर कुछ बुदबुदा रहा है. तेनाली राम कुशाग्र बुद्धि था. साधु के होंठों की गति देख वह क्षण भर में ही समझ गया कि साधु कोई मंत्रोच्चार नहीं कर रहा है है, बल्कि अनाप-शनाप कह रहा है. साधु ढोंगी था. तेनालीराम ने उसे सबक सिखाने का निर्णय किया.
वह साधु के पास गया और उसकी दाढ़ी का एक बाल खींचकर तोड़ दिया और कहने लगा की कि उसे स्वर्ग की कुंजी मिल गई है.
उसने घोषणा की कि ये साधु चमत्कारी हैं. इनके दाढ़ी का एक अबर अपने पास रखने से मृत्यु उपरांत स्वर्ग की प्राप्ति होगी.
यह सुनना था कि वहाँ उपस्थित समस्त लोग साधु की दाढ़ी का बाल तोड़ने के लिए तत्पर हो गए. तेनालीराम द्वारा अपनी दाढ़ी का बाल खींचे जाने से हुई पीड़ा से साधु उबरा नहीं था. उसकी घोषणा सुन वह तुरंत समझ गया कि लोग उसके साथ क्या करने वाले हैं.
वह जान बचाकर वहाँ से भाग गया. तब तेनालीराम ने उपस्थित लोगों को वस्तुस्थिति से अवगत काराया और ऐसे ढोंगियों से दूर रहने की नसीहत दी.