महाराज का सपना

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एक दिन जब राजा कृष्णदेव राय दरबार में पहुँचे, तो किसी गहरी सोच में डूबे हुए थे. जब वे सिंहासन पर विराजे, तो दरबार की कार्यवाही प्रारंभ करने के पूर्व दरबारियों को बीती रात देखा अपना सपना सुनाने लगे.

सपने में महाराज ने बादलों के बीच उड़ता हुआ एक सुंदर महल देखा था, जो बहुमूल्य पत्थरों से बना हुआ था. हरा-भरा बगीचा और फ़व्वारा उस महल की शोभा बढ़ा रहे थे. इतने में ही सपना टूट गया था. किंतु महाराज उसे भुला नहीं पा रहे थे.

उन्होंने दरबारियों से पूछा कि इस सपने का क्या अर्थ है? क्या यह सपना पूरा करने योग्य है?
तेनालीराम कहना चाहता था कि इस तरह का सपना व्यर्थ होता है. इसे भूल जाना चाहिए. किंतु उसके कहने के पहले ही राजगुरु बोल पड़ा, “महाराज! मेरे विचार में आपको ये सपना इसलिए आया, ताकि आप इसे पूरा कर सकें. आपको अपने सपनों के महल का निर्माण करवाना चाहिए.”
राजगुरु लोभी और धूर्त प्रवृत्ति का व्यक्ति था. वह चाहता था कि महल निर्माण की ज़िम्मेदारी उसे दे दी जाये, ताकि वह निर्माण में व्यय किये जाने वाले धन को स्वयं हड़प ले.
तेनालीराम राजगुरु की योजना समझ गया था, किंतु वह कुछ कहता उसके पहले ही महाराज ने महल निर्माण की ज़िम्मेदारी राजगुरु को सौंप दी और उसे अगले ही दिन से कार्य प्रारंभ करने का आदेश दे दिया.
दिन गुजरते रहे. राजगुरु ने महल निर्माण का कार्य प्रारंभ नहीं किया. महाराज जब भी उससे महल के बारे में पूछते, तो वह निर्माण में हो रही देरी का कोई न कोई बहाना बना देता. वह महाराज से उनके सपने के बारे में तरह-तरह के प्रश्न पूछता और उनके समय बढ़ाने के साथ-साथ बजट के नाम पर धन भी ऐंठ लेता.
एक दिन महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में एक वृद्ध व्यक्ति आया और न्याय की गुहार लगाने लगा. महाराज अपनी न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने वृद्ध को आश्वासन दिया कि उसे न्याय अवश्य दिया जायेगा और उससे उसकी समस्या पूछी.

वृद्ध व्यक्ति बताने लगा कि वह एक धनी व्यापारी था. लेकिन एक सप्ताह पहले उसका धन लूट लिया गया और उसके परिवार की हत्या कर दी. महाराज से पूछा कि क्या वह जानता है कि ऐसा किसने किया.
वृद्ध व्यक्ति बोला, “कल रात मुझे एक सपना आया और उसमें मैंने देखा कि महाराज आपने और राजगुरु ने मेरा धन लूटा है और मेरे परिवार की हत्या की है.”
यह सुनकर महाराज क्रोधित हो गये और बोले, “क्या अनाप-शनाप बक रहे हो. तुम्हारा सपना मात्र एक सपना है, वो सच कैसे हो सकता है?”

वृद्ध व्यक्ति ने उत्तर दिया, “मैं उस राज्य का निवासी हूँ, जहाँ के राजा ने एक सपना देखा और अब उस असंभव सपने को पूर्ण करने में लगा हुआ है. तो अवश्य ही मेरा सपना भी सच ही होगा.”
उत्तर सुनकर महाराज को अपनी गलती का अहसास हुआ. उन्होंने ध्यान से वृद्ध व्यक्ति तो देखा, तो समझ गए कि वह तेनालीराम ही है, जो वेश बदलकर उन्हें उनकी गलती समझाने आया है.
उन्होंने उसी समय अपने सपनों का महल बनाने का आदेश निरस्त कर दिया. 
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