तीन गुड़ियाँ

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एक बार राजा कृष्णदेव राय के दरबार में पड़ोसी राज्य का एक धनी व्यापारी आया. महाराज को प्रणाम कर वह बोला, “महाराज! आपके राज्य में व्यापार के उद्देश्य से मेरा आगमन हुआ था. जहाँ भी मैं गया, वहाँ आपके दरबार के मंत्रियों की बहुत प्रशंषा सुनी. तो मैं आपसे और आपके मंत्रियों से भेंट करने आ गया.”

“आपने ठीक सुना है. हमारे मंत्री कर्मठ और बुद्धिमान हैं.” महाराज कृष्णदेव राय बोले.
“महाराज आप आज्ञा दें, तो मैं आपके मंत्रियों की एक छोटी सी परीक्षा लेना चाहता हूँ.” व्यापारी बोला.
जब महाराज ने आज्ञा दे दी, तब व्यापारी ने अपने थैले में से तीन गुड़िया निकाली, जो दिखने में एक सरीखी थीं.

उन्हें महाराज को देते हुए वह बोला, “महाराज! ये तीनों गुड़ियाँ दिखने में एक जैसी हैं, लेकिन इन सबमें एक-एक अंतर है. आपके मंत्रियों को वही अंतर पता लगाना है. मैं ३० दिनों के उपरांत पुनः दरबार में उपस्थित होऊंगा. आशा है, तब तक आपके मंत्रीगण इसका उत्तर ढूंढ लेंगे.”
इतना कहकर वह चला गया. महाराज ने वो तीनों गुड़ियाँ तेनालीराम को छोड़कर अपने हर मंत्री को तीन-तीन दिनों के लिए दी, ताकि वे उनमें अंतर ढूंढ सके. लेकिन कोई भी मंत्री इसमें सफ़ल नहीं हो पाया. महाराज ने स्वयं भी उन गुड़ियों में अंतर ढूंढने का प्रयास किया, लेकिन वे भी सफ़ल न हो सके.
ऐसे में उन्हें चिंता सताने लगी कि यदि व्यापारी वापस आया और उसे पता लगा कि हमारा कोई भी मंत्री उसके प्रश्न का उत्तर नहीं ढूंढ पाया है, तो ये राज्य के मंत्रियों के साथ-साथ पूरे राज्य के लिए लज्जा की बात होगी.
व्यापारी के आने में मात्र तीन दिन ही शेष रह गए थे. अब महाराज के पास अपने सबसे विश्वासपात्र तेनालीराम को बुलाने के अलावा कोई चारा शेष न था.
उन्होंने तेनालीराम को बुलाया और उसे वह तीनों गुड़ियाँ देते हुए बोले, “तेनालीराम! हमें लगा था कि व्यापारी की दी हुई इन तीन गुड़ियों में अंतर हमारे दरबार के मंत्री ही ढूंढ लेंगे. लेकिन ऐसा हो न सका. हम भी इसमें सफ़ल न हो सके. अब तुम ही हमारी आखिरी आशा हो. हमें तुम पर पूर्ण विश्वास है कि तुम राज्य के सम्मान की रक्षा करोगे.”
तेनालीराम तीनों गुड़ियाँ लेकर घर चला गया. दो दिनों तक बहुत देखने, समझने और सोचने के बाद भी उसे गुड़ियों में कोई अंतर समझ नहीं आया. तीसरे दिन भी वह सोचता रहा और शाम होते तक उसने वह अंतर ढूंढ लिया. रात में वह आराम से सोया और अगले दिन नियत समय पर दरबार पहुँच गया.
वहाँ महाराज कृष्णदेव राय और सारे दरबारी उपस्थित थे, साथ ही पड़ोसी राज्य का व्यापारी भी.
महाराज बोले, “तेनालीराम! व्यापारी महाशय को तीनों गुड़ियों का अंतर बताओ.”
तेनालीराम अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ और कहने लगा, “महाराज! ये तीनों गुड़ियाँ दिखने में एक जैसी हैं, लेकिन इन सबमें एक अंतर है, जो इन्हें एक-दूसरे से अलग करती हैं. पहली गुड़िया के एक कान और मुँह में छेद है. दूसरी गुड़िया के दोनों कान में छेद है. तीसरी गुड़िया के बस एक कान में छेद है.”
“बिल्कुल सही बोले तेनालीराम. लेकिन ये भी बताओ कि इन छेदों का अर्थ क्या है?” व्यापारी बोल पड़ा.
तेनालीराम ने सेवक से कहकर तीन पतले तार मंगवाये. पहला तार पहली गुड़िया के कान के छेद में डाला. वह मुँह के छेद से बाहर आ गया. सबको यह दिखाते हुए तेनालीराम बोला, “ये पहली गुड़िया, जिसके एक कान और मुँह में छेद है, ऐसे व्यक्ति को दर्शाती है, जिसे कोई गुप्त बात बताने पर वह उसे गुप्त न रखकर दूसरों को बता देता है. ऐसे व्यक्ति पर विश्वास नहीं किया जा सकता.”

फिर उसने दूसरी गुड़िया के कान के छेद में तार डाला, वह तार दूसरे कान के छेद से बाहर निकल आया. वह बोला, “यह दूसरी गुड़िया, जिसके दोनों कान में छेद है, ऐसे व्यक्ति को दर्शाती है, जो किसी भी बात को एक कान से सुनता है और दूसरे से निकाल देता है. ऐसा व्यक्ति आपकी किसी बात को कोई महत्व नहीं देता.”
फिर उसने तीसरी गुड़िया के कान में तार डाला. वह तार उसके अंदर ही रहा. यह दिखाकर तेनालीराम बोला, “यह तीसरी गुड़िया, ऐसे व्यक्ति को दर्शाती है, जो किसी भी गुप्त बात को अपने हृदय में छुपाकर रखता है. ऐसे व्यक्ति पर पूर्ण विश्वास किया जा सकता है.”
तेनालीराम का उत्तर सुनकर महाराज और व्यापारी प्रसन्न हो गये. उन्होंने उसकी बुद्धिमानी की दिल खोलकर प्रशंषा की और पुरूस्कार भी दिए.
तब तेनालीराम बोला, “महाराज! मैंने आपको इन तीन गुड़ियों के चरित्र का एक अन्य वर्णन भी बताता हूँ. पहली गुड़िया ऐसे व्यक्ति को दर्शाती है, जो स्वयं ज्ञान प्राप्त कर वह ज्ञान दूसरों में बांटता है. दूसरी गुड़िया ऐसे व्यक्ति को दर्शाती है, जो ज्ञान की बात भी कभी ध्यान से नहीं सुनता. तीसरी गुड़िया ऐसे व्यक्ति को दर्शाती है, जो स्वयं तो ज्ञान प्राप्त कर लेता है, लेकिन वह ज्ञान अपने भीतर ही छुपाकर रखता है और कभी दूसरों को नहीं बताता.”

यह वर्णन सुनकर व्यापारी कहता है, “तेनालीराम तुम्हारे बारे में जितना सुना था, तुम उससे भी कहीं अधिक बुद्धिमान हो.”
व्यापारी महाराज कृष्णदेव राय से विदा लेकर चला जाता है. इस तरह तेनालीराम के कारण राज्य का सम्मान व्यापारी के सामने बच जाता है
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