बेशकीमती फूलदान

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राजा कृष्णदेव राय के जन्मदिन के अवसर राजमहल में बहुत बड़े भोज का आयोजन किया गया. पड़ोसी राज्य के कई मित्र राजा उस शुभ अवसर पर महाराज को बधाई देने पहुँचे और उन्हें एक से बढ़कर एक बेशकीमती उपहार दिए.
सभी उपहारों में महाराज को सबसे ज्यादा प्रिय चार फूलदान थे. वे रत्न-जड़ित फूलदान कला का उत्कृष्ट नमूना थे. महाराज ने उन्हें अपने शयन कक्ष में रखवाया और एक सेवक को उनके उचित रख-रखाव की ज़िम्मेदारी सौंप दी.
सेवक पूरी सावधानी से उन फूलदानों की साफ़-सफ़ाई किया करता था. उसे पता था कि महाराज को वे फूलदान कितने प्रिय थे. यदि उसकी असावधानी से उन्हें कुछ भी नुकसान हुआ, तो फिर उसकी खैर नहीं.
किंतु एक दिन जो नहीं होना था, वह हो गया. सफ़ाई करते समय उन चार फूलदानों में से एक फूलदान सेवक के हाथ से फ़िसलकर नीचे गिरा और चकनाचूर हो गया. डर के मारे उनकी जान सूख गई. लेकिन यह बात न छिपनी थी और ना ही छिपी.

महाराज को जब फूलदान टूटने की ख़बर मिली, तो वे आग-बबूला हो गये. उन्होंने उस सेवक को फांसी पर लटका देने का आदेश दे दिया. वह सेवक बहुत रोया, बहुत मिन्नते की, लेकिन महाराज टस से मस न हुए. अगले दिन सेवक को फांसी पर लटकाया जाना था.
तेनालीराम को जब ये बात पता चली, तो उन्होंने महाराज से मिलकर इस छोटे से अपराध के लिए सेवक को फांसी देने का विरोध किया. लेकिन महाराज इतने अधिक क्रोधित थे कि उन्होंने तेनालीराम की बात अनुसुनी कर दी.
महाराज को समझाने में विफ़ल होने के बाद तेनालीराम बंदीगृह में उस सेवक से मिलने पहुँचे. सेवक तेनालीराम को देख अपने प्राणों की रक्षा के लिए गिड़गिड़ाने लगा. तेनालीराम उसे दिलासा देते हुए बोले, “विश्वास करो, तुम्हें कुछ नहीं होगा. बस फांसी के पूर्व जैसा मैं कहूं वैसा ही करना.”
तेनालीराम सेवक के कान में कुछ कहकर वहाँ से चले गए. अगले दिन सेवक को फांसी से पूर्व महाराज के सामने ले जाया गया. महाराज ने उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछी, तो वह बोला, “महाराज, मेरी अंतिम इच्छा बचे हुए तीन फूलदानों को देखने की है.”
उसकी अंतिम इच्छा पूरे करने वे तीनों फूलदान दरबार में मंगवाये गए. जैसे ही वे फूलदान उस सेवक के सामने ले जाए गए, उसने उन्हें उठाकर जमीन पर पटक दिया. तीनों फूलदानों के टुकड़े जमीन पर बिखर गए.
अपने प्रिय फूलदानों का ये हश्र देख महाराज का क्रोध सांतवें आसमान पर पहुँच गया. वे चीख पड़े, “ये तुमने क्या कर दिया मूर्ख? इन फूलदानों को तुमने क्यों तोड़ा?”
“महाराज! मेरे हाथों जब एक फूलदान टूटा, तो मुझे मृत्युदंड मिला. जब ये तीन फूलदान टूटेंगे, तब भी किसी न किसी को मृत्युदंड मिलेगा. मैंने इन्हें तोड़कर उन लोगों के प्राण बचा लिए हैं क्योंकि मनुष्य के प्राण से बढ़कर और कुछ भी नहीं.” सेवक हाथ जोड़कर बोला.
यह बात सुनकर महाराज में समझ आया कि अपने क्रोध के वशीभूत होकर वह क्या अनिष्ट करने वाले थे. उन्होंने सेवक को छोड़ देने का आदेश दिया और उससे पूछा, “किसके कहने पर तुमने से ऐसा किया?”
सेवक ने तेनालीराम का नाम लिया.
महाराज तेनालीराम से बोले, “तेनालीराम हम तुमसे बहुत प्रसन्न हैं. क्रोध के आवेश में लिया गया निर्णय कभी किसी के साथ न्याय नहीं कर सकता. आज तुमने हमारे हाथों अन्याय होने से बचा लिया.”
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