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एक गाँव में एक वृद्ध किसान अपनी पत्नी की साथ रहता था. किसान के पत्नी युवा थी. पति के वृद्ध होने के कारण वह पति से विरक्त हो चुकी थी. उसका ह्रदय सदा पर-पुरूष की ओर आकर्षित रहता था.
वह प्रवृति से उन्मुक्त थी. कभी घर की चार दीवारी के दायरे में बंध कर नहीं रहती थी. सैर-सपाटे में उसका मन बहुत रमता था, जहाँ उसका पर-पुरूष से मेल-मिलाप होता रहता था. उनसे हँसी-ठिठोली कर वह अपना ह्रदय प्रसन्न किया करती थी.
एक दिन वह कहीं जा रही थी कि एक चोर की दृष्टि उस पर पड़ गई. चोर उसकी प्रवृत्ति से अनभिज्ञ नहीं था. वह उसका पीछा करने लगा और एकांत स्थान पाकर उसे रोककर बोला, “सुनो, तुम्हें देखते ही मैं तुम पर आसक्त हो गया हूँ. मेरी पत्नी की मृत्यु हो चुकी है. मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे साथ चलो.”
किसान की पत्नी चोर की ओर आकर्षित हो गई. कुछ सोचते हुए वह बोली, “मुझे तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार है. किंतु, मैं आज तुम्हारे साथ नहीं चल सकती. मेरे पति के पास बहुत सा धन है. मैं वह लेकर कल तुम्हारे साथ चलूंगी, ताकि हमारा जीवन सुखमय रहे.“
चोर तैयार हो गया. प्रातः उसी स्थान पर मिलने का तय कर दोनों अपने-अपने घर लौट गए. रात में जब किसान सो गया, तो उसकी पत्नी ने सारा धन समेटकर एक गठरी में बांध लिया. भोर होने पर वह नियत स्थान पर गठरी समेत पहुँच गई. चोर वहाँ पहले ही पहुँच चुका था. दोनों साथ में दूसरे गाँव के लिए प्रस्थान कर गये.
मार्ग में एक गहरी नदी पड़ी. दोनों नदी किनारे खड़े होकर नदी पार करने के बारे में विचार करने लगे. चोर सोचने लगा कि इस स्त्री को साथ ले जाना विपत्ति को आमंत्रण देना है. कोई न कोई इसे ढूंढता हुआ अवश्य ही मुझ तक पहुँच ही जायेगा और मेरे लिए संकट उत्पन्न कर देगा. अतः धन हथियाकर इससे पिंड छुड़ाना ही उचित होगा.
वह किसान की पत्नी से बोला, “देखो, तुम्हें और इस गठरी को लेकर एक साथ इस गहरी नदी को पार कर पाना कठिन है. मैं पहले गठरी ले जाता हूँ. फिर तुम्हें ले जाऊंगा.”
किसान की पत्नी मान गई और गठरी चोर को दे दी. चोर ने यह कहकर उसके कपड़े और गहने भी ले लिए कि इनके साथ नदी पर करने में कठिनाई होगी.
फिर वह गठरी, कपड़े और गहने लेकर नदी पार चला गया और लौटकर नहीं आया. किसान की पत्नी प्रतीक्षा करती रह गई. उसकी करनी ने उसे पूरे गाँव में लज्जित कर दिया.
सीख
हमें अपने कर्मों का फ़ल अवश्य मिलता है. स्वार्थ में अंधे होकर अनुचित कर्म करने पर उसका अनुचित फ़ल मिलेगा.