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शतरंज हमारे राष्ट्रीय खेलों में से एक है और यह एक बेहद रोचक खेल है, जिसे हर उम्र के लोग खेलते हैं। हालांकि इसे अभी ओलंपिक खेलों में नहीं जोड़ा गया है फिर भी इसे पूरे विश्व में पसंद किया जाता है।
वैसे तो हम सब बहुत से खेल जानते हैं और खेलते आए हैं, परंतु शतरंज एक ऐसा खेल है जिसे हर आयु और क्षेत्र के लोग बड़े रुचि के साथ खेलते आए हैं। शतरंज एक बेहतरीन खेल है और इसकी शुरूआत भारत में माना जाता है।
शतरंज के कुछ नियम
हर खेल को खेलने के कुछ नियम व तरीके होते हैं, जिसके आधार पर हम कोई भी खेलते हैं। शतरंज एक चौकोर तख्त पर खेला जाता है जिसपर काले और सफेद रंग के 64 खाने बने होते हैं। इसे एक बार में दो लोग खेल सकते हैं और इस खेल में ढेर सारे मोहरें होते हैं जैसे कि, हाथी, घोड़े, राजा, ऊंट, आदी। इन सब की चालें भी पूर्व निर्धारित होती हैं जैसे कि-
राजा – जो कि इस खेल का बहुत ही अहम भाग होता है और यह किसी भी दिशा में केवल एक कदम चलता है।
घोड़ा – घोड़ा किसी भी दिशा में 2½ कदम चलता है।
सिपाही – यह सदैव आगे कि ओर चलता है कभी पीछे नहीं हटता। और सामान्यतः यह एक कदम सीधा चलता है परंतु परिस्थिति के अनुसार इसके चाल में परिवर्तन आ जाता है जैसे कि किसी को काटना हो तो तिरछे भी चल सकता है।
बिशप (ऊंट) – यह हमेशा तिरछा चलता है, चाहे कोई भी दिशा हो।
रानी (वजीर) – स्थान खाली होने पर यह कसी भी दिशा में चल सकता है।
हाथी – यह हमेशा सीधी दिशा में चलता है।
प्रत्येक खिलाड़ी को अपनी बारी चलने का मौका बारी-बारी से दिया जाता है।
इस खेल का मुख्य लक्ष्य शह और मात देना होता है।
निष्कर्ष
शतरंज एक ऐसा खेल है जिसमें भरपूर बुद्धि का उपयोग होता है और हम जितना ज्यादा अपने मस्तिष्क का उपयोग करेंगे उतना ही अधिक हमारे मस्तिष्क का विकास होता है। बच्चों को यह खेल जरूर खेलना चाहिये। आजकल स्कूलों में शतरंज को स्पोर्ट्स के रूप में बड़े जोरों से बढ़ावा दिया जा रहा है।
शतरंज भारत के प्राचीन खेलों में से एक है और इस खेल कि उत्पत्ति भारत में ही हुई जिसे पहले ‘चतुरंग’ कहा गया। इसकी उत्पत्ति से लेकर बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं और कई भारतीय ग्रंथों में इसका उल्लेख आसानी से देखा जा सकता है।
शतरंज की उत्पत्ति
पहले इस खेल को केवल राजा-महाराजा खेला करते थे, जो आगे चल कर सब खेलने लगे।
कहा जाता है कि रावण ने सबसे पहले इस खेल को अपनी पत्नी मंदोदरी के मनोरंजन के लिये बनाया था।
आगे चलकर भारत में शतरंज कि उत्पत्ति के सबूत राजा श्री चंद्र गुप्त के काल (280-250 BC) में मिलते हैं। यह भी माना जाता है कि पहले से जो पासों का खेल था उससे राजा उब चुके थे और वे अब कोई ऐसा खेल खेलना चाहते थे जिसे बुद्धि के बल पर जीता जाए, क्यों कि पासों का खेल पूरी तरह किस्मत पर आधारित होता था। शतरंज एक ऐसा खेल बना जिसमें भरपूर बुद्धि का प्रयोग किया जाता है।
छठवीं शताब्दी में भारत में पारसियों के आने के बाद इस खेल को ‘शतरंज’ कहा जाने लगा। तो वहीं यह खेल ईरानियों के जरिये जब यूरोप पहुंचा तो इसे ‘चेस’ नाम मिला।
खेल के अहम हिस्से
इस खेल में 64 खाने बने होते हैं तथा इसे 2 लोगों के खेलने के लिये बनाया गया था। इस खेल में दोनों तरफ एक-एक राजा एवं रानी/ वजीर हुआ करते थे, जो कि आज भी वैसे ही है। दोनों खिलाड़ियों के पास समान रूप से दो घोड़े, दो हाथी, दो ऊंट और आठ सैनिक होते हैं। ऊंट कि जगह पहले, नाव हुआ करते था, परंतु इस खेल के अरब गमन के बाद इसमें नाव कि जगह ऊंट ने लेली।
यह एक बेहतरीन खेल है और हर मुहरे के कुछ निर्धारित चाल हैं, जिसके आधार पर सब चलते हैं। दोनों खिलाड़ियों को अपने राजा को सुरक्षित रखना होता है। जिसके राजा कि मृत्यु पहले हो जाती है, वह खेल हार जाता है। युं तो हर कोई इसे खेलता है परंतु विश्वनाथ आनंद भारत के अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। जो कि कई बार विश्व विजेता भी रह चुके हैं।
निष्कर्ष
शतरंज एक बेहद रोचक खेल है और इसे कई बुद्धिजीवी बड़े शौक से खेलते हैं। हर उम्र के लोग इस खेल का आनंद लेते हैं और जगह-जगह खेल प्रतियोगिताएं भी कराई जाती हैं। शतरंज को राष्ट्रीय खेलों कि श्रेणी में स्थान प्राप्त है।