घमंड का सिर नीचा

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एक गाँव में उज्वलक नामक एक निर्धन बढ़ई रहता था. धन अर्जित करने के प्रयोजन से उसने परदेश जाने का विचार किया और परदेश की यात्रा में घर से रवाना हो गया.
गाँव पार करने के बाद रास्ते में एक घना जंगल पड़ा. जहाँ उसे प्रसव पीड़ा से कराहती एक ऊँटनी दिखाई पड़ी. उस ऊँटनी ने एक ऊँट को जन्म दिया. बढ़ई को ऊँटनी और उसके बच्चे पर दया आ गई और वह परदेश जाने का विचार त्यागकर उन दोनों को लेकर अपने घर लौट आया.
घर के बाहर ही उसने एक खूँटी से ऊँटनी को बांध दिया. वह रोज़ जंगल से हरे पत्ते लाकर ऊँटनी को खिलाने लगा. कुछ ही दिनों में ऊँटनी स्वस्थ हो गई. वह और उसका बच्चा बढ़ई के घर ही रहने लगे. ऊँटनी का दूध बढ़ई के बच्चों के पीने की काम आता और कुछ दूध वह गाँव में बेच आता. इस तरह ऊँटनी उसकी आजीविका का साधन बन गई.
समय बीता और ऊँटनी का बच्चा भी बड़ा हो गया. उसका उपयोग बढ़ई माल ढुलाई में करने लगा. बढ़ई ने ऊँट के गले में एक घंटी बांध दी. इससे ऊँट कहीं भी होता, उसे पता चल जाता था और उसे ढूंढना आसान हो जाता था.
कुछ वर्षों में बढ़ई ने कई ऊँट और ऊँटनियाँ ख़रीद ली. उसका व्यापार अच्छा चल पड़ा. ऊँटनियों का दूध बेच-बेचकर वह धनवान हो गया. ऊँटों से माल ढुलाई करवाकर भी उसे अच्छी कमाई होने लगी.
सब कुछ अच्छा चल रहा था. किंतु, जिस ऊँट के गले में घंटी बंधी हुई थी, वह स्वयं को दूसरे ऊँटों से श्रेष्ठ समझने लगा. जब सारे ऊँट जंगल में पत्ते खाने जाते, तो वह समूह छोड़कर अकेला ही इधर-उधर घूमता रहता और घर भी देर से लौटता.
जंगल में जंगली जानवरों का भय था. उस पर उसके गले में घंटी बंधी हुई थी, जिसकी ध्वनि से जानवरों को ऊँट का पता चल जाता था. अन्य ऊँटों ने उसे चेताया, किंतु अपने घमंड में उसने किसी की बात नहीं मानी. उसे लगता था कि अन्य ऊँट उसकी घंटी से जलते हैं. इसलिए उसके गले से उसे उतरना चाहते हैं.
एक दिन जंगल में पत्ते खाने के बाद सारे ऊँट गाँव लौटने लगे, तो सबने उस ऊँट को भी अपने साथ चलने को कहा. लेकिन वह अकेला ही जंगल में घूमने निकल गया.
वह चलता, तो उसके गले की घंटी बजने लगती. एक शेर ने जब घंटी की आवाज़ का पीछा किया, तो उसे हृष्ट-पुष्ट ऊँट दिखाई पड़ा. उसे अपना शिकार मिल चुका था. उसने ऊँट पर झपट्टा मारा और उसका काम तमाम कर दिया.
सीख
घमंडी का सिर नीचा.

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