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एक गाँव में एक ब्राह्मण अपने पत्नी के साथ रहता था. पत्नी मुँहफट थी. इसलिए ब्राह्मण के कुटुम्बियों संग उसकी बनती नहीं थी. परिवार में सदा कलह का वातावरण बना रहता था.
ब्राहमण प्रतिदिन के इस कलह से तंग आ गया आर सोचने लगा कि रोज़-रोज़ की कलह से परदेश जाकर अलग घर बसाकर रहना अच्छा रहेगा. कम से कम शांति से तो जीवन व्यतीत होगा. यह विचार कर वह कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी को लेकर परदेश की यात्रा पर निकल गया.
मार्ग में एक घना जंगल पड़ा. लंबी यात्रा के कारण ब्राह्मण और ब्राह्मणी दोनों थक गए थे. ब्राह्मणी का प्यास के कारण बुरा हाल था. ब्राह्मण उसे एक पेड़ के नीचे बिठाकर जल की व्यवस्था करने चला गया. किंतु, जब तक वह जल लेकर लौटा, तब तक ब्राह्मणी ने प्यास के कारण अपने प्राण त्याग दिए थे.
ब्राह्मणी को मृत देखा ब्राहमण बहुत दु:खी हुआ. वह ईश्वर से प्रार्थना करने लगा, “हे ईश्वर, मैं अपनी पत्नी के साथ नया जीवन आरंभ करने परदेश जा रहा था. तूने उसके ही प्राण हर लिए. कृपा कर भगवन…मेरी पत्नी में पुनः प्राण फूंक दे.”
ब्राहमण की प्रार्थना सुन ईश्वर की आकाशवाणी हुई, “ब्राहमण, यदि तू अपने आधा प्राण ब्राह्मणी को दे देगा, तो वह जी उठेगी.”
ब्राह्मण ने अपना आधा प्राण ब्राह्मणी को दे दिया. ब्राह्मणी पुनः जीवित हो गई. दोनों ने पुनः अपनी यात्रा प्रारंभ कर दी.
चलते-चलते दोनों एक नगर के बाहर पहुँचे. वहाँ पहुँचकर ब्राह्मण ने ब्राह्मणी को एक कुएं के पास बैठने को कहा और स्वयं भोजन की व्यवस्था करने चला गया.
ब्राह्मणी कुएं के पास गई, तो उसने देखा कि एक लंगड़ा किंतु सुकुमार युवक रहट चला रहा है. दोनों ने एक-दूसरे से हंसकर बात की और एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हो गये. दोनों अब साथ रहना चाहते थे.
इधर जब ब्राह्मण भोजन की व्यवस्था कर लौटा, तो ब्राह्मणी को एक लंगड़े युवक से बातें करते हुए पाया. ब्राह्मण को देखकर ब्राह्मणी बोली, “यह युवक भी भूखा है. इसे भी भोजन में से कुछ अंश दे देते हैं. हमें पुण्य प्राप्त होगा.”
ब्राह्मण ने लंगड़े युवक को अपने साथ भोजन करने आमंत्रित किया. तीनों ने साथ-साथ भोजन किया.
भोजन करने के बाद जब प्रस्थान करने का समय आया, तो ब्राह्मणी ब्राह्मण से बोली, “क्यों ना इस युवक को भी अपने साथ ले चलें. दो से तीन भले. बात करने के लिए एक अच्छा साथ मिल जाएगा. वैसे भी तुम कहीं जाते हो, तो मैं अकेली रह जाती हूँ. अकेले मुझे भय सताता है. ये रहेगा, तो किसी प्रकार का भय नहीं रहेगा.”
ब्राह्मण बोला, “हम अपना बोझ तो उठा नहीं पा रहे हैं. इस लंगड़े का बोझ कैसे उठायेंगे. मेरी मानो इसे यहीं छोड़ो. हम दोनों आगे बढ़ते हैं.”
किंतु, ब्राह्मणी का ह्रदय लंगड़े पर आसक्त हो चुका था. वह कहने लगी, “इसे हम पिटारे में अपने साथ ले चलते हैं. ये भी कहीं न कहीं हमारे किसी काम आ ही जायेगी.”
अंततः ब्राह्मण ने ब्राह्मणी की बात मान ली और पिटारे में डालकर लंगड़े को साथ ले लिया.
कुछ दूर जाने के बाद वे पानी पीने के लिए एक कुएं के पास रुके. वहाँ पानी निकालते समय ब्राह्मणी और लंगड़े ने ब्राह्मण को कुएं में धकेल दिया. उन्हें लगा कि ब्राह्मण मर गया है और वे आगे बढ़ गये.
कुछ दिनों की यात्रा की पश्चात् वे एक नगर की सीमा पर पहुँचे. लंगड़ा अब भी पिटारी में ही था. सीमा पर उपस्थित पहरेदारों ने ब्राह्मणी को रोक लिया और पिटारे की तलाशी ली. तलाशी में पिटारे में से लंगड़ा बाहर निकला. दोनों को राजदरबार ले जाया गया.
राजदरबार में राजा ने ब्राह्मणी से पूछा, “ये लंगड़ा कौन है? इसे तुम पिटारे में छुपाकर क्यों ला रही थी?”
ब्राह्मणी बोले, “ये मेरा पति है. कुटुम्बियों से तंग आकर हम अपना देश छोड़कर परदेश आये हैं. कई लोग मेरे पति के बैरी हो चुके हैं. इसलिए अपने पति को मैं पिटारे में छुपाकर लाई हूँ. कृपा कर आप इस नगर में हमें निवास करने की अनुमति प्रदान कर उपकार करें.”
राजा ने उन्हें नगर में बसने की अनुमति दे दी और दोनों नगर में पति-पत्नी की तरह रहने लगे.
उधर कुएं में गिरे ब्राह्मण को कुछ साधुओं ने कुएं से बाहर निकाल लिया था. कुछ दिन साधुओं के साथ रहकर ब्राह्मण उसी नगर में आ गया, जहाँ ब्राह्मणी लंगड़े के साथ रह रही थी.
एक दिन ब्राह्मण की ब्राह्मणी से भेंट हो गई, जिसके बाद दोनों में कहा-सुनी होने लगी. बात बढ़कर राजा के समक्ष पहुँची.
राजा ने ब्राह्मणी से पूछा, “ये कौन है?”
ब्राह्मणी बोली, “ये मेरे पति का बैरी है. उसे मारने आया है. इसे मृत्यु-दंड दीजिये.”
राजा ने ब्राहमण को मृत्यु-दंड की आज्ञा दी, जिसे सुनकर ब्राह्मण बोला, “महाराज! आपका दिया हर दंड मुझे स्वीकार है. किंतु, मेरी एक विनती सुन लीजिये. इस स्त्री के पास मेरा कुछ है. उसे दिलवा दीजिये.”
राजा ने ब्राह्मणी से पूछा, “इस व्यक्ति का कुछ तुम्हारे पास है क्या?”
ब्राह्मणी बोली, “नहीं महाराज, मेरे पास इसका कुछ भी नहीं. ये झूठ बोल रहा है.”
तब ब्राह्मण बोला, “तूने मेरे प्राणों का आधा भाग लिया है. ईश्वर इसका साक्षी है. ईश्वर से डर स्त्री. अन्यथा, बहुत बुरा परिणाम भोगेगी.”
ब्राह्मणी यह बात सुनकर डर गई और बोली, “जो कुछ भी मैंने तुझसे लिया है, वह तुझे वापस करने का मैं वचन देती हूँ.”
यह कहना थी कि ब्राह्मणी नीचे गिर गई और वहीं मर गई. उसके आधे प्राण अब वापस ब्राह्मण में समा गए थे. ब्राहमण ने राजा को समस्त वृतांत कह सुनाया. सारी बात जानने के बाद राजा ने लंगड़े को उसकी करतूत के लिए कारावास में डाल दिया.
सीख
बुरे कर्म का बुरा फल मिलता है.
जिसने आप पर उपकार किया हो, उसके प्रति कृतज्ञ रहो.
संबंधो में प्रेम और विश्वास को महत्त्व दो. किसी से धोखा मत करो.