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किसी जंगल में नीम का एक पेड़ था। उस पर मधुमक्खियों का बड़ा-सा एक छत्ता था। उसी पेड़ पर कबूतरों का घोंसला भी था। एक दिन मधुमक्खियों की रानी नदी में गिर गई। कबूतर ने यह देख लिया। वह उड़कर गया और अपनी चोंच में पीपल का एक पत्ता दबा लाया। वह मधुमक्खी के ऊपर उड़ता हुआ गया और पत्ता मधुमक्खी के आगे गिरा दिया। मधुमक्खी पत्ते पर आ गई। कबूतर पत्ते को अपनी चोंच में दबाकर ले आया। मधुमक्खी अभी मरी नहीं थी। कबूतर ने पत्ता नीम की छाया में रख दिया। कुछ देर बाद मधुमक्खी ठीक हो गई और उड़कर अपने छत्ते में चली गई।
एक दिन जंगल में एक शिकारी आया। उसने पेड़ पर बैठे कबूतर पर तीर का निशाना लगाना चाहा। छत्ते में बैठी मधुमक्खी ने यह देख लिया। उसने कबूतर को पहचान लिया। यह वही कबूतर था, जिसने उसके प्राण बचाए थे। रानी मधुमक्खी ने छत्ते की सभी मधुमक्खियों को कुछ समझाया। अभी शिकारी तीर छोड़ भी न पाया था कि सारी मधुमक्खियाँ छत्ते से निकलकर उस पर झपट पड़ीं। शिकारी का निशाना चूक गया। इस प्रकार कबूतर की जान बच गई।