Getting your Trinity Audio player ready... |
राजा कृष्णदेव राय के दरबार में अक्सर ज्ञानी विद्वान पंडितों के मध्य विभिन्न विषयों पर चर्चा हुआ करती थी. समय-समय पर विभिन्न राज्यों से भी विद्वान पुरुष दरबार में आते और अपने ज्ञान का परिचय देते थे. राजा भी उनके आव-भगत और सम्मान में कोई कसर नहीं छोड़ते थे.
एक बार एक व्यक्ति राजा कृष्णदेव राय के दरबार में उपस्थित हुआ. वह स्वयं को महान ज्ञाता और विद्वान दर्शा रहा था. उसका अहंकार उसकी बातों से झलक रहा था. उसने स्वयं के बारे में खूब बढ़ा-चढ़ाकर बातें की. उसके बाद दरबार में बैठे ज्ञानियों को वाद-विवाद के लिए चुनौती दे दी.
उसकी बढ़ी-चढ़ी बातों से सभी दरबारी सहम गए थे. अपमान के डर से किसी भी दरबारी ने उसके साथ वाद-विवाद की चुनौती स्वीकार नहीं की. ऐसा में राजा ने तेनालीराम की ओर देखा, तो तेनालीराम अपने स्थान से उठा खड़ा हुआ.
वह विद्वान को प्रणाम करते हुए बोला, “महाशय! मैं आपके साथ वाद-विवाद के लिए तैयार हूँ. कल ठीक इसी समय मैं आपसे राजदरबार में भेंट करता हूँ.”
अगले दिन पूरा राजदरबार भरा हुआ था. विद्वान पुरुष अपने स्थान पर पहले ही पहुँच चुका था. बस सबको तेनालीराम की प्रतीक्षा थी. कुछ ही देर में सबकी प्रतीक्षा समाप्त हुई और तेनालीराम दरबार में उपस्थित हुआ.
तेनालीराम राजा को प्रणाम कर वाद-विवाद हेतु नियत स्थान पर विद्वान के समक्ष बैठ गया. अपने साथ मलमल के कपड़े से बंधा हुआ एक बहुत बड़ा गठ्ठर लेकर आया था, जो देखने में भारी ग्रंथों और पुस्तकों का गठ्ठर लग रहा था.
विद्वान पुरुष ने जब इतना बड़ा गठ्ठर देखा, तो सहम गया. इधर राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम के हाव-भाव देखकर आश्वस्त थे कि अवश्य ही तेनालीराम किसी योजना के साथ उपस्थित हुआ है. उन्होंने वाद-विवाद प्रारंभ करने का आदेश दिया.
आदेश पाते ही तेनालीराम (Tenali Rama) विद्वान से बोला, “महाशय, आपके ज्ञान और विद्वता के बारे में मैंने बहुत कुछ सुना है. इसलिए मैं ये महान पुस्तक लेकर आया हूँ. आइये इस पुस्तक में लिखित विषयों पर वाद-विवाद करें.”
पुस्तक देख पहले से ही सहमे विद्वान पुरुष ने पूछा, “क्या मैं इस महान पुस्तक का नाम जान सकता हूँ?”
“अवश्य! इस पुस्तक का नाम है तिलक्षता महिषा बंधन” तेनालीराम बोला.
पुस्तक का नाम सुनकर विद्वान पुरुष घबरा गया. उसने पहले कभी उस पुस्तक का नाम नहीं सुना था. वह सोचने लगा कि इस पुस्तक का तो मैंने नाम तक नहीं सुना है. इस पर लिखित विषयों पर मैं कैसे चर्चा कर पाऊंगा.
वह तेनालीराम से बोला, “यह तो बहुत उच्च कोटि की पुस्तक प्रतीत होती है. इस पर चर्चा करने मुझे बहुत प्रसन्नता होगी. किंतु आज मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है. ऐसे गहन विषय पर चर्चा हेतु मन-मष्तिष्क के साथ-साथ सेहत भी दुरुस्त होनी आवश्यक है. मैं आज आराम करता हूँ. कल इस पुस्तक पर स्वस्थ मन –मस्तिष्क से चर्चा करेंगे.”
तेनालीराम मान गया. अगले दिन वह नियत समय पर अपना गठ्ठर लिए पुनः राज-दरबार में पहुँचा. किंतु विद्वान पुरुष का कोई अता-पता नहीं था. बहुत देर प्रतीक्षा करने के बाद भी वह उपस्थित नहीं हुआ. वाद-विवाद में हार जाने के डर से वह नगर से भाग चुका था.
राजा सहित सभी दरबारी चकित थे कि ऐसी कौन सी पुस्तक तेनालीराम ले आया, जिसके डर से स्वयं को महान ज्ञाता बताने वाला भाग गया.
राजा ने पूछा, “तेनाली! बताओ तो सही, ये कौन सी महान पुस्तक है. मैंने भी आज से पहले कभी इस पुस्तक का नाम नहीं सुना है.”
तेनालीराम मुस्कुराते हुए बोला, “महाराज, यह कोई महान पुस्तक नहीं है. मैंने ही इसका नाम ‘तिलक्षता महिषा बंधन’ रख दिया है.”
“इसका अर्थ तो बताओ तेनाली.” राजा बोले.
“महाराज! तिलक्षता का अर्थ है – ‘शीशम की सूखी लकड़ियाँ. महिषा बंधन का अर्थ है – ‘भैसों को बांधने की रस्सी’. इस गठ्ठर में वास्तव में शीशम को सूखी लकड़ियाँ हैं, जो भैसों को बांधने वाली रस्सी से बंधी हुई है. मैंने इसे मलमल के कपड़े में कुछ इस तरह लपेट कर ले आया था कि देखने में यह पुस्तक जैसी लगे.” तेनालीराम मुस्कुराते हुए बोला.
तेनालीराम की बात सुनकर राजा सहित सारे दरबारी हँस पड़े. इस प्रकार तेनालीराम ने अपनी बुधिमत्ता से एक अहंकारी विद्वान के समक्ष अपने नगर का सम्मान बचा लिए. राजा ने प्रसन्न होकर तेनालीराम को ढेरों उपहार दिए.