वनवासी और सांप की कहानी

Getting your Trinity Audio player ready...


सर्दियों के दिन थे. ख़ूब बर्फ़बारी हुई थी. मौसम साफ़ होने पर एक वनवासी अपना काम खत्म कर जल्दी-जल्दी घर लौटने लगा. रास्ते में उसने देखा कि एक स्थान पर बर्फ़ पर कुछ काला-काला सा पड़ा हुआ है.
वह पास गया, तो पाया कि वह एक सांप है, जो लगभग मरणासन्न अवस्था में है. वनवासी को सांप पर दया आ गई. उसने उसे उठाया और उसे अपने थैले में डाल लिया, ताकि उसे कुछ गर्माहट मिल सके.

घर पहुँचकर उसने सांप को थैले से निकाला और उसे आग के पास रख दिया. वनवासी का बच्चा सांप के पास बैठ गया और उसे नज़दीक से देखने लगा. आग की गर्मी ने मानो सांप में नए जीवन का संचार कर दिया. उसमें हलचल होने लगी.

यह देख बच्चे ने सांप को दुलारने और सहलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया. लेकिन, सांप ने तुरंत फन फैला लिया और बच्चे को डसने के लिए तैयार हो गया. यह देख, वनवासी ने कुल्हाड़ी निकालकर सांप के दो टुकड़े कर दिए और बोला, “दुष्ट से कृतज्ञता की आशा नहीं करनी चाहिए.”

सीख 
दुष्ट से कृतज्ञता की आशा मूर्खता है.
Scroll to Top