व्यापारी का पतन और उदय

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बहुत समय पहले की बात है. वर्धमान नामक नगर में दंतिल नाम का व्यापारी रहता था. अथक परिश्रम, लगन और कुशलता के कारण उसका व्यापार दिन-दूनी रात-चौगुनी वृद्धि कर कर रहा था. राज्य का राजा भी उससे बहुत प्रसन्न था. इसलिए प्रायः परामर्श हेतु उसे बुलाया करता था.
राजा से निकटता के कारण दंतिल के महल में आने-जाने पर कोई रोक-टोक नहीं थी. वह पूर्ण अधिकार के साथ बेरोक-टोक महल में विचरण किया करता था. महल के समस्त सेवक उसका बहुत सम्मान करते थे.
दंतिल की एक सुंदर कन्या था, जो विवाह-योग्य हो चुकी थी. अच्छा वर देखकर उसने धूम-धाम से उसका विवाह संपन्न किया और पूरे नगर वासियों को एक बड़ा भोज दिया. भोज में नगर का हर व्यक्ति आमंत्रित था, राजघराने से लेकर धनी व्यापारी, सैनिक से लेकर सेवक तक. कोई भी नहीं छूटा था.
राजा के महल में झाडू लगाने वाला एक सेवक भी भोज में आया हुआ था. वह अनभिज्ञतावश एक ऐसे स्थान पर बैठ गया, जो राजघराने के मेहमानों के लिए सुरक्षित था. जब दंतिल ने उसे वहाँ बैठा हुआ देखा, तो आग-बबूला हो गया. उसने उसे अपमानित कर भोज से भगा दिया.
अपने साथ हुए इस व्यवहार से सेवक क्रोधित हो गया और उसने प्रतिशोध लेने की ठान ली. अगले दिन राजा के कक्ष में झाड़ू लगाते समय जब उसने देखा कि राजा अर्ध-निंद्रा की स्थिति में है, तो बड़बड़ाना शुरू कर दिया, “ये दंतिल व्यापारी इतना गिर गया है कि रानी से दुर्व्यवहार करने लगा है.”
राजा ने जब ये बात सुनी, तो तत्काल आँखें खोल दी. उठकर उसने सेवक से पूछा, “जो तुम कह रहे हो, क्या वो सच है?”
सेवक कहने लगा, “महाराज, मैं कल रात ठीक से सो नहीं पाया. इसलिए नींद में कुछ भी बड़बड़ा रहा हूँ, मुझे क्षमा करें…मुझे क्षमा करें.”
राजा उस समय मौन रहा. किंतु, सेवक के जाने के बाद उसकी कही बातों पर विचार करने लगा. उसे उनकी सत्यता पर पूर्ण विश्वास नहीं था, लेकिन मन में दंतिल के प्रति संदेह का भाव उत्पन्न हो चुका था. फलस्वरुप उसने उसकी महल में बेरोक-टोक आवाजही पर पाबंदी लगा दी.
उस दिन जब दंतिल रोज़ की तरह महल में आया, तो द्वारपालों ने उसे द्वार पर ही रोक लिया. वह आश्चर्यचकित होकर बोला, “तुम लोग मुझे इस तरह कैसे रोक सकते हो? क्या मुझे नहीं जानते?”
द्वारपालों ने उसे राजा के आदेश से अवगत करा दिया.
उस समय सेवक वहीं झाड़ू लगा रहा था. वह दंतिल पर व्यंग्यबाण छोड़ते हुए बोला, “अरे द्वारपालो! तुम लोग इन्हें नहीं जानते. ये महाराज के ख़ास हैं. इनका इतना रुतबा है कि ये किसी को भी कहीं से भी भगा सकते हैं. मुझे कल इन्होंने अपने भोज से अपमानित कर भगा दिया था. कहीं तुम लोगों को महल से ना भगा दें.”
सेवक की बात सुनकर दंतिल समझ गया कि हो ना हो, जो उसके साथ हो रहा है, उसमें इस सेवक का ही हाथ है. उस समय तो वह वहाँ से चला गया. किंतु, कुछ दिनों बाद उसने सेवक को अपने घर में बुलाया, उसका ख़ूब आदर-सत्कार किया, उसे शानदार भोजन करवाया और ढेरों उपहार देकर विदा किया.
जाते समय उसने सेवक से क्षमा भी मांगी, “मुझे क्षमा करना मित्र, उस दिन मुझे तुमसे वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिय था.”इतनी आवभगत से सेवक पहले ही प्रसन्न हो चुका था. दंतिल के क्षमा मांगने पर उसका मन द्रवित हो गया. वह बोला, “हम दोनों ने एक-दूसरे के साथ गलत किया है. किंतु, व अतीत था और हमें अतीत की बातें भूल जानी चाहिए. मैं आपको वचन देता हूँ कि आपको वो सम्मान पुनः प्राप्त होगा, जिसके आप सदा से अधिकारी रहे हैं.”
अगले दिन राजा के कक्ष में झाड़ू लगाते समय उसने जब राजा को पुनः अर्ध-निंद्रा की स्थिति में देखा, तो बड़बड़ाने लगा, “ऐसा मूर्ख राजा मैंने आज तक नहीं देखा. कैसा राजा है ये, जो गुसलखाने में खीरे खाता है.”
जब राजा ने कानों में ये बात पड़ी, तो वह क्रोधित होकर उठ बैठा और सेवक से बोला, “मूर्ख, तुझमें इतना साहस कि मेरे बारे ऐसी अनर्गल बात बोले.”
सेवक ने राजा के चरण पकड़ लिए और कहने लगा, “महाराज, क्षमा कर दें…नींद पूरी न होने पर उनींदी अवस्था में मेरे मुँह से कुछ भी अनाप-शनाप निकल जाता है.”
राजा ने उसे क्षमा कर दिया. सेवक कक्ष से बाहर चला गया. राजा पलंग पर बैठा-बैठा ही सोचने लगा कि ये मूर्ख सेवक जब मेरे बारे में कुछ भी अनर्गल बड़बड़ा सकता है, तो दंतिल के बारे में भी बड़बड़ा सकता है. मुझे इसकी बातों में आना ही नहीं चाहिए था. व्यर्थ में मैंने दंतिल से महल में आने-जाने का अधिकार छीन लिया.
राजा ने तत्काल अपने आदेश वापस लिए और दंतिल को पुनः महल में सारे अधिकार प्रदान कर दिए. इस तरह दंतिल को अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त हो गई.
सीख
हमने सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए.
बिना पूर्ण जांच-पड़ताल के सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए.

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